Friday 4 March 2011

स्वामी रामदेव- तीन भ्रम और उनकी वास्तविकता

आजकल स्वामी रामदेव देशभर में चर्चा का विषय बने हुए है। जहाँ कई साईंटे ऐसी है जो इस विषय पर स्वामी रामदेव कि आलोचना में कई लेख निकाल चुकी है, वही कुछ साईंटे ऐसी भी है जिन्होंने उनके पक्ष में भी लेख प्रकाशित किये है। विश्व में कोई भी व्यक्तित्व शत प्रतिशत स्वीकार्य नहीं है विरोध किसी भी कार्य का पहला चरण है, जिन विशिष्ट व्यक्तियों का मैंने नीचे जिक्र किया है उन सभी का प्यार और समर्थन स्वामी रामदेव को हासिल है, हालाँकि ये सूची काफी लम्बी है लेकिन हो सकता है कुछ लोगो को ये भी छोटी लगे, मैं कुछ सम्मानित व्यक्तियों और संस्थाओं के नाम देना चाहता हूँ जैसे योगपितामह श्री बी के एस अयंगर जी, श्री श्री रविशंकर, सद्गुरु जग्गी वासुदेव, महामंडलेश्वर श्री सत्यमित्रानंद जी,महामंडलेश्वर श्री अवधेशानंद गिरिजी, श्री रमेश भाई ओझा जी, सुधांशु जी महाराज, श्री शंकराचार्य जी कांची काम कोटि पीठ, प्रणव पंड्या गायत्री परिवार, ब्रह्माकुमारी, किरण बेदी, अन्ना हजारे, गोविन्दाचार्य, अग्निवेश, राम जेठमलानी, कल्बे जव्वाद, अरविन्द केजरीवाल, विश्वबंधु गुप्ता, कुप श्री सुदर्शन, मोहन भागवत, स्वामी चिदानंद मुनि जी महाराज, सुब्रमण्यम स्वामी, वेद प्रताप वैदिक, आर्क बिशप विन्सेंट कांसेसो, महमूद ए मदनी, जे ऍम लिंगदोह, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, मुफ्ती शमूम काजमी, मल्लिका साराभाई, अरुण भाटिया, सुनीता गोदरा, आल इंडिया बैंक इम्प्लायिस फेडरेशन और सबसे बढ़कर अखिल भारतीय अखाडा परिषद् और  न जाने कितने और लोग और संस्थाए, अब अगर उनके आलोचकों को ये भी काम लगता है तो कुछ और लोगो के नाम भी मैं उपलब्ध करा सकता हूँ। अगर ये आलोचक इन लोगो से भी ज्यादा विद्वान और समझदार है, तो कृपया अपना नाम और पता बताये सबसे पहले तो उनके चरण ही छुने चाहिए अगर नहीं तो इन लोगो के वात्सल्य का कारण जानना चाहिए कि क्यों स्वामी रामदेव इन्हें इतने प्रिय है।
आलोचकों की केवल तीन शंकाए है जो जानकारी के अभाव के कारण है।

पहली - स्वामी रामदेव की संपत्ति घोषित नहीं है और उनकी बहुत सारी संपत्ति विदेशों में भी है।
उत्तर - स्वामी रामदेव के नाम कोई भी संपत्ति या बैंक अकाउंट नहीं है जो भी है वो ट्रस्ट का है जो पूर्णतः घोषित है, और सरकार द्वारा इसका प्रतिवर्ष आडिट भी किया जाता है। इसके लिए आप पतंजलि योगपीठ से पत्राचार कर सकते है और २५ मार्च को तमाम टी वी चैनलों पर भी उन्होंने इसकी घोषणा कर दी थी। जहाँ तक विदेशो में संपत्ति का सवाल है ये गोपनीय नहीं है जो भी व्यक्ति प्रातः ५ से साढ़े ७ तक आस्था चैनल देखता है। वो इस बात को जानता है और ये भी जानता है कि स्वामी जी को ये संपत्ति किसने और कब दान में दी और इसका भारत के कर एवं कानून व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है। ये उन देशो में वहा के भक्तो द्वारा दिया गया दान है जिसे उन देशो कि सरकारों द्वारा ही देखा जाना है अगर भारत सरकार को इसमे कोई शंका है तो वो उन सभी देशो के नाम जानती है आवश्यक कार्यवाही कर सकती है।

दूसरी - स्वामी रामदेव कोई बड़े विद्वान व्यक्ति नहीं है और योग के कोई खास जानकर नहीं है वो आम साधारण लोगो को बहका कर उन्हें लूट रहे है।
उत्तर - स्वामी रामदेव हमेशा इस बात को स्वीकार करते है कि वो कोई विद्वान व्यक्ति नहीं है बल्कि गाँव के किसान के घर पैदा हुए कम पढ़े लिखे व्यक्ति है और मोटी बात समझते है और मोटी बात ही बोलते है। योग और आयुर्वेद पर भी उनका ज्ञान वृहद् नहीं है लेकिन जो बोलते है वो तथ्यात्मक है और तार्किक एवं वैज्ञानिक भी वो एम्स, दिल्ली में भी एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में व्याख्यान दे चुके है(ऐसे सेमिनारों के सूची बहुत लम्बी है उन्हें यहाँ दे पाना संभव नहीं है) और सबसे बड़ी बात देश के मूर्धन्य योगगुरुओं का उन्हें आशीर्वाद प्राप्त है, जिनका जिक्र लेख में ऊपर किया जा चुका है। जहा तक आम साधारण लोगो को बहका कर उन्हें लूटने कि बात है तो ऊपर दी गयी विद्वानों सूची से ये जाना जा सकता है कि बहकने वाले केवल आम साधारण लोग नहीं है वो बार बार कहते है कि मुझे समर्थ लोगो से ज्यादा से ज्यादा दान कि आवश्यकता है जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लोगो का भला किया जा सके जैसे पतंजलि योगपीठ के देश में ७००  से भी ज्यादा चिकित्सालय है जहाँ निशुल्क चिकित्सीय परामर्श प्राप्त किया जा सकता है और ८०० से ज्यादा आरोग्य केंद्र है जहाँ से रोगी शुद्ध दवाए और अन्य उत्पाद बाज़ार से कम मूल्य पर खरीद सकता है ( ये याद रक्खे कि आयुर्वेद कि ज्यादातर दवाएं दुर्लभ जड़ी बूटियों से बनती है जिनका उत्पादन बहुत कम है स्वामी रामदेव के प्रयासों से इस क्षेत्र में किसानों के लिए सम्भावनाये बढ़ी है जिससे भविष्य में आयुर्वेदिक दवाओं के दाम कम हो सकते है और नए रोजगार सृजित हो सकते है )। हरिद्वार के पतंजलि योगपीठ में स्थित संत रविदास लंगर में रोज ५ हज़ार लोगो को निशुल्क भोजन कराया जाता है।  हरिद्वार के पतंजलि योगपीठ में ४०० कमरों कि निशुल्क आवास व्यवस्था (महर्षि वाल्मीकि धर्मशाला) भी कि गयी है। योग पर वैज्ञानिक परीक्षण करने के लिए और आधुनिक चिकित्सीय विज्ञान में मान्यता दिलाने के लिए उस पर शोध कि आवश्यकता है जिसके लिए धन कि जरूरत है। पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट और भारत स्वाभिमान ट्रस्ट दो अलग अलग ट्रस्ट है और इनमे दिये जाने वाले दान का प्रयोग भी अलग अलग क्षेत्र में होता है।

तीसरी - स्वामी रामदेव की राजनीतिक महत्वाकांक्षा है ।
उत्तर - इसका जवाब समय ही दे सकता है फिलहाल उनके राजनीतिक हस्तक्षेप से जनता को उम्मीदे है वो पहले भी कह चुके है कि वो सन्यासी है और सन्यासी ही रहेंगे वो कोई राजनीतिक पद नहीं लेंगे लेकिन शीर्ष राजनीतिक पदों पर योग्य लोगो को ही बैठने देंगे अगर आजका राजनीतिक नेतृत्व चाहे वो किसी भी पार्टी का हो उनकी ९ सूत्रीय मांगो को पूरा करता है या पूरा करने का वचन देता है तो वो उसका समर्थन करेंगे और अपनी तरफ से कोई राजनीतिक विकल्प नहीं खड़ा करेंगे, अगर किसी राजनीतिक दल को उनकी मांगे गलत लगती है तो उनसे संवाद कर सकता है वो अपने घोषणापत्र में बदलाव करने को तैयार है। जहाँ आज देश के नामी वकील (सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, वीरप्पा मोइली, हंसराज भरद्वाज, मनीष तिवारी, अभिषेक मनु सिंघवी, रविशंकर प्रसाद, जयंती नटराजन.........) और किसान (मुलायम सिंह, चौधरी अजित सिंह, ओमप्रकाश चौटाला , भूपिंदर सिंह हुड्डा............) और ग्वाले (लालू प्रसाद...................) और शिक्षक (मायावती..............) और अभिनेता (हेमामालिनी, गोविंदा, राजबब्बर, जयाप्रदा, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना...........) और कुछ राष्ट्र द्रोही(महबूबा मुफ्ती, सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाईज उमर फारूख..............) और कुछ धार्मिक नेता और संत ( स्वामी चिन्मयानन्द, सतपाल महाराज, योगी आदित्यनाथ, उमा भारती...............) और खिलाडी( अज़हरुद्दीन, कीर्ति आज़ाद, नवजोत सिद्धू...................) और पत्रकार (कुलदीप नय्यर, बलबीर पुंज, चन्दन मित्रा, राजीव शुक्ला...........)  और अपराधी( मुख़्तार अंसारी, शहाबुद्दीन, धनञ्जय सिंह, अरुण गवली .............)   तमाम डॉक्टर, इंजीनियर, रिटायर्ड अधिकारी, रिटायर्ड जज  इन सभी के पेशे पर कोई सवाल नहीं ये सभी नेता बन सकते है चुनाव लड़ सकते है लेकिन अगर स्वामी रामदेव इनके चरित्र पर सवाल उठाते है और साथ ही ये वचन भी देते है कि वो कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे उस पर न जाने कितने सवाल।
             
स्वामी रामदेव के भारत स्वाभिमान संगठन के ९ उद्देश्य उल्लिखित है -
१. स्वदेशी चिकित्सा व्यवस्था
२. स्वदेशी शिक्षा व्यवस्था
३. स्वदेशी अर्थ व्यवस्था 
४. स्वदेशी कानून एवं कर व्यवस्था
५. भारतीय संस्कृति की रक्षा
६. भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी, महगाई, एवं भूखमुक्त वैभवशाली भारत   का निर्माण
७. ग्रामीण स्वावलंबन
८. पर्यावरण की रक्षा एवं स्वच्क्षता
९. नियंत्रित जनसँख्या
इन उद्देश्यों को पूरा करने के कुछ उपाय देश की कुछ सम्मानित हस्तियों और विशेषज्ञों द्वारा सुझाया गया है ये आन्दोलन इन्ही उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जा रहा है देश के सभी सम्मानित नागरिको से अनुरोध है कि वो सभी भारत स्वाभिमान कार्यक्रम के निम्नलिखित संगठनों में से किसी में भी शामिल होकर इस आन्दोलन को समर्थन दे, अगर कोई शंका हो तो पहले उसका पुर्णतः निराकरण करे आज देश को आपकी जरूरत है ।
भारत स्वाभिमान कार्यक्रम के संगठन -

    * युवा संग़ठन
    * शिक्षक संग़ठन
    * चिकित्सक संग़ठन
    * वित्तीय व्यवसायी संग़ठन
    * अधिवक्ता एवं पूर्व न्यायधीशों का न्यायविद् संग़ठन
    * किसान संग़ठन
    * उद्योग एवं वाणिज्य संग़ठन
    * पूर्व सैनिक संग़ठन
    * कर्मचारी संग़ठन
    * अधिकारी संग़ठन
    * विज्ञान एवं तकनीकी संग़ठन
    * कला-संस्कृति संग़ठन
    * मीडिया संग़ठन
   * वरिष्ठ नागरिक संग़ठन
जय हिंद, जय भारत।

Tuesday 14 December 2010

वामपंथी हिंसा, हिंसा न भवति।।

ये एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि जो विचार मानव समाज के अनुकूल नहीं होंगे वो स्वतः ही ख़त्म हो जायेंगे। वामपंथ ऐसी ही एक फांसीवादी विचारधारा है, जो जहाँ भी उभरी भारी जन-धन की तबाही लेकर आयी लेकिन जल्द ही लोगों को इस असफल विचारधारा का भान हो गया और अब ये खात्मे की और है। फ़िलहाल ये दुनिया के मात्र ६ देशों(चीन, बेलारूस,उत्तर कोरिया, क्यूबा, लाओस, वियतनाम) में ही सिमट कर रह गयी है। लगभग २० के आस पास देशों(अल्बानिया, मंगोलिया, पोलैंड, बुल्गारिया, कम्बोडिया, कांगो, हंगरी, रोमानिया, सोमालिया, युगोस्लाविया, पूर्वी जर्मनी, बेनिन अफगानिस्तान, दक्षिण यमन,सेज़ोस्लोवाकिया, मोजाम्बिक, एथिओपिआ, अंगोला और सोवियत संघ) ने इस फांसीवादी विचारधारा को अलविदा कह दिया है। चीन में भी अब वामपंथ खात्मे की ओर है और उसमे भी पूंजीवाद(साम्यवादी पूंजीवाद) ने अपनी जगह बना ली है। चीन के वामपंथियों ने वामपंथ के उन्हीं सिद्धांतों को अपना रक्खा है, जिससे उनकी सत्ता बरक़रार रहें और ये इस बात का भी उदाहरण है कि धुर साम्यवादी विचार किसी का भी भला नहीं कर सकते। हिटलर को तानाशाह और फांसीवादी कहने वाले खुद के गिरेबान में झांकना भूल जाते है स्टालिन, सोवियत संघ (८ मिलियन से लेकर ६१ मिलियन), माओत्से तुंग, चीन(४० मिलियन से ७० मिलियन), कम्पूचिया की साम्यवादी पार्टी, कम्बोडिया(१.२ मिलियन से लेकर २.२ मिलियन) लोगो की हत्या अपने शासन काल में इन महानुभावों और इनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने किये। अगर वामपंथियों को ये आकड़े कम लगते हो तो ठीक लेकिन अगर कोई शंका हो तो यहाँ चटका लगाये।
http://en.wikipedia.org/wiki/Mass_killings_under_Communist_regimes
http://en.wikipedia.org/wiki/Stalin
http://en.wikipedia.org/wiki/Mao
http://en.wikipedia.org/wiki/Khmer_Rouge
लेकिन इनका एक महान सिद्धांत “वामपंथी हिंसा, हिंसा न भवति।।” इनके सारे पापों को ढक लेता है। ये तो कुछ उदाहरण है जेएनयू में प्रवेश लेने वाले जिन बच्चों के भोलेपन का ये फायदा उठाते हुए उन्हें वामपंथी चश्मा पहना देते है, वो अगर इनकी सच्चाई जान ले तो ये वामपंथी उन्हें क्या नास्तिक बनायेंगे उनका स्वतः ईश्वर पर से विश्वास उठ जायेगा।
वामपंथ के जिस स्वघोषित स्वर्णिम इतिहास को वामपंथी अपने दिल में बसाये रखना चाहते है, उसे दुनिया के सभी लोग काला इतिहास मानते है। पूरी बींसवी सदी इनके खून-खराबे से रक्त रंजित रहीं और ये नारे लगाते रहे की वामपंथ एक महान विचार है और इससे पूरी दुनिया के सभी लोगो में आर्थिक समानता आ जाएगी। इनके इस झूठे प्रचार में दुनिया के कई देश और उसके बुद्धिजीवी आ गए और जब तक उन्हें ये पता चला की ये विचारधारा न केवल अनुत्पादक है बल्कि उनके देश की समृद्धि के लिए घातक भी है, तब तक देर हो चुकी थी लाखों लोग इसकी हिंसा के शिकार हो चुके थे जैसे कई बार ऐसा होता है कि व्यापारी अपने लाभ के लिए किसानों को फसलों के बीज ये कह कर बेच देता है कि फलां बीज बहुत ही उत्पादक है। ये सीधे विदेश से आयात किया गया है और इसका इस्तेमाल करते ही उसकी दरिद्रता दूर हो जाएगी और इसके लिए वो प्रचार साधनों का इस्तेमाल करता है और कुछ देशी-विदेशी क्षद्म विद्वानों का सहारा उन्हें कुछ पैसा देकर और कुछ विदेशी पुरस्कारों की व्यवस्था कर ले लेता है। और किसानों को जब तक सच्चाई पता चलती है तब तक देर हो चुकी होती है। वामपंथी विचार किसी खेंत में उग रहें खर-पतवार की तरह होते है, जो न केवल अनुत्पादक होते है बल्कि खेत में उगने वाली अन्य फसल को भी चौपट कर देते है। एक अनपढ़ किसान भी इस बात को समझता है और अपनी फसल को बचाने के लिए इन खर-पतवारों को जड़ से उखाड़ने में लग जाता है। इसलिए दुनिया के हर देश से इनको उखाड़ा जा रहा है। भारत में भी कुछ खर-पतवार बची रह गयी है, जरूरत इस बात की है की देश के किसान(राष्ट्रवादी) अपने कार्य में बिना थके बिना रुके लगे रहें नहीं तो इस खर-पतवार को फिर भयानक रूप लेने में समय नहीं लगेगा।
सभी राष्ट्रवादियों को सचेत हो जाना चाहिए कि इस खर-पतवार की कोई दवा नहीं इसलिए समय और धन दोनों का इस्तेमाल इसको जड़ से उखाड़ने में करें न कि इसका इलाज़ करने में क्योंकि देश कि कुछ राष्ट्रविरोधी शक्तियों ने इन्हें दवा देकर अपने अनुसार नियंत्रित करने कि कोशिश कि लेकिन ये खर-पतवार एक नए घातक रूप(माओवाद) रूप में हमारे सामने आ गयी है। इनको नियंत्रित करना है तो इनको समूल नाश करना ही एक विकल्प है।
ये विचार न केवल मानव के बल्कि प्रकृति के सामान्य सिद्धांतों के भी विपरीत है, जब एक खेत में बहुत सारें फलों, सब्जिओं और अनाजों कि खेती होती है तो क्या सभी फसलों को एक बराबर जल, वायु, मृदा और सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है और क्या वो एक बराबर उत्पादन भी करते है और क्या उनके उत्पाद के सभी गुणों में भी समानता होती है, अगर नहीं तो मानवीय विचारों की फसल के ऊपर इन सिद्धांतों को कैसे लागू किया जा सकता है। १ किलो चावल पैदा करने के लिए लगभग २५०० लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि १ किलो आलो के लिए मात्र १३३ लीटर की, जबकि दोनों उत्पादों में बहुत सी समानताएं है तो क्या चावल जितना पानी आलू में भी डाल दे या चावल से भी आलू के समानुपातिक उत्पाद की उम्मीद करें। सभी फसलों को जल, वायु, मृदा और सूर्य का प्रकाश मिलता है, लेकिन नारियल, सरसों, मूंगफली और सूरजमुखी के पेड़-पौधे उसी में से अलग अलग तरह के तेलों का उत्पादन करती है तो आवंला तेल के साथ बहुमूल्य लवणों का। हमें पीपल और बरगद के विशाल वृक्षों की भी आवश्यकता है और प्याज, लहसुन, धनियाँ और पुदीने की भी। कुछ वामपंथी ये दावा करते है कि वामपंथ विचारों की विविधताओं से भरा हुआ है, लेकिन उन्हें ये समझना होगा की चावल की कितनी भी किस्में क्यों न पैदा हो जाएँ उससे मनुष्य की कुछ आवश्यकता तो पूरी हो सकती है, लेकिन सारी शारीरिक आवश्यकताए नहीं पूरी की जा सकती। वैसे ही वामपंथ के विचार मानव की कुछ बौद्धिक आवश्यकताओं को ही पूरा कर सकते है(हालाँकि इसमें भी मुझे संदेह है)। एक मानव और एक भारतीय होने के नाते भी मेरा ये मानना है कि भारत में भी वो दिन दूर नहीं जब सभी को अपने आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के लिए सामान अवसर मिलेंगे सौभाग्य से इतने भौतिक पतन के पश्चात आज भी भारत कि बगियाँ में सभी विचारों को सामान अवसर मिलते हैं। जगत में कोई भी मानवीय सिद्धांत प्रकृति के सिद्धांतों के उपर नहीं है चाहे वो दुनिया के किसी भी सर्वमान्य महापुरुष द्वारा ही क्यों न उत्पादित किया गया हो तो मार्क्स-लेनिन क्या चीज़ है। प्रकृति का सिद्धांत कहता है कि सभी को समान अवसर मिलने चाहिए न की मार-काट के सभी को एक समान बनाया जाये।